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बांग्लादेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गैर-दलीय कार्यवाहक सरकार प्रणाली बहाल

“ढाका – बांग्लादेश के हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए “संसदीय चुनावों के लिए गैर-दलीय कार्यवाहक सरकार प्रणाली” को फिर से बहाल करने के संवैधानिक प्रावधान की पुष्टि की है। इस फैसले को देश की राजनीति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।”

गैर-दलीय कार्यवाहक सरकार प्रणाली क्या है?

गैर-दलीय कार्यवाहक सरकार प्रणाली का उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। इस प्रणाली के तहत, जब आम चुनाव होते हैं, तो मौजूदा सरकार भंग हो जाती है और चुनावों की देखरेख के लिए एक तटस्थ कार्यवाहक सरकार का गठन किया जाता है। यह सरकार किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ी नहीं होती और केवल प्रशासनिक कार्यों का संचालन करती है।

पृष्ठभूमि: संवैधानिक प्रावधान का हटना

गौरतलब है कि वर्ष 2011 में बांग्लादेश की संसद ने संविधान संशोधन के माध्यम से कार्यवाहक सरकार प्रणाली को समाप्त कर दिया था। इस कदम के बाद विपक्षी दलों ने लगातार निष्पक्ष चुनाव की मांग को लेकर आंदोलन किए और इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया।

हाईकोर्ट का फैसला

बांग्लादेश हाईकोर्ट ने विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि “कार्यवाहक सरकार प्रणाली का हटाया जाना संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।” कोर्ट ने अपने आदेश में इस प्रणाली को बहाल करने की बात कही ताकि भविष्य में चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संपन्न हो सकें।

लोकतंत्र के लिए बड़ा कदम

विशेषज्ञों का मानना है कि हाईकोर्ट का यह निर्णय देश में विश्वसनीय चुनाव प्रक्रिया को स्थापित करने के लिए बेहद जरूरी था। विपक्षी दलों ने फैसले का स्वागत किया और इसे लोकतंत्र के लिए जीत करार दिया।

एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “कार्यवाहक सरकार प्रणाली का पुनः लागू होना बांग्लादेश की राजनीति में भरोसा बहाल करेगा। इससे चुनाव प्रक्रिया पर लोगों का विश्वास मजबूत होगा और राजनीतिक दलों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा संभव हो सकेगी।”

सत्ताधारी दल की प्रतिक्रिया

हालांकि, सरकार ने इस फैसले पर अपनी चिंता जताई है और कहा कि यह “सत्तारूढ़ सरकार के लिए अस्थिरता का कारण बन सकता है।” सत्ताधारी दल के नेताओं का मानना है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने के लिए वर्तमान प्रणाली भी पर्याप्त है।

आगे की राह

हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद अब बांग्लादेश की संसद पर यह निर्भर करेगा कि वह इस प्रणाली को फिर से लागू करने के लिए क्या कदम उठाती है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच व्यापक चर्चा की संभावना भी जताई जा रही है।

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