कृषि: ग्रामीण विकास की रीढ़ – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
“भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना में कृषि का अहम स्थान है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में अपने संबोधन में कहा कि कृषि न केवल ग्रामीण विकास की धुरी है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत का आधार भी है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान और किसानों के सशक्तिकरण पर जोर देते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार और निवेश से ही देश के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।”
कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अटूट संबंध
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की अधिकांश आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, और उनकी आय का मुख्य स्रोत कृषि और उससे जुड़े कार्य हैं। कृषि में प्रगति से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और गांवों का समग्र विकास संभव होगा।
कृषि सुधार की आवश्यकता
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि किसानों को आधुनिक तकनीकों और नवाचारों से जोड़ने की जरूरत है। इससे उनकी उत्पादकता बढ़ेगी और वे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे। इसके अलावा, उन्होंने निम्नलिखित सुधारों पर बल दिया:
- सिंचाई व्यवस्था का सुधार: किसानों को समय पर और पर्याप्त जल उपलब्ध कराना।
- फसल बीमा योजना का प्रभावी क्रियान्वयन: किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए।
- उन्नत तकनीक का उपयोग: आधुनिक उपकरणों और तकनीकों को खेती में शामिल करना।
ग्रामीण विकास के लिए कृषि का महत्व
ग्रामीण विकास का सीधा संबंध कृषि से है। जब कृषि प्रगति करेगी, तब गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी सुविधाओं का स्तर भी बेहतर होगा। उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से ग्रामीण आधारभूत ढांचे को मजबूत किया जा सकता है।
युवाओं को कृषि से जोड़ने की अपील
धनखड़ ने कहा कि ग्रामीण युवाओं को कृषि में करियर के अवसर तलाशने चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कृषि को एक लाभदायक पेशे के रूप में स्थापित करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना चाहिए।
कृषि के विकास से आत्मनिर्भर भारत का सपना
उपराष्ट्रपति ने कृषि को आत्मनिर्भर भारत का मूल आधार बताया। उन्होंने कहा कि यदि देश का किसान सशक्त होगा, तो भारत न केवल अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि वैश्विक कृषि निर्यात में भी एक प्रमुख स्थान प्राप्त करेगा।
