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सोनम वांगचुक के विरोध-प्रदर्शन की अनुमति पर दिल्ली HC में सुनवाई: जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की इजाजत मिलेगी या नहीं, आज फैसला

लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और इंजीनियर सोनम वांगचुक द्वारा जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन करने की अनुमति को लेकर आज दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi HC) में सुनवाई हो रही है। वांगचुक, जो अपने पर्यावरण संरक्षण अभियानों और हिमालयी क्षेत्रों के लिए संवेदनशील मुद्दों पर आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं, ने प्रदर्शन के लिए जंतर-मंतर पर अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्हें अब तक अनुमति नहीं दी गई है।

क्या है मामला?

सोनम वांगचुक ने जंतर-मंतर पर एक शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करने की योजना बनाई थी, जिसमें वह लद्दाख और हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। उनका कहना है कि इन क्षेत्रों में हो रहे पर्यावरणीय संकट पर सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। खासकर ग्लेशियरों के पिघलने, जलवायु परिवर्तन और स्थानीय लोगों के जीवन पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए वह यह प्रदर्शन करना चाहते हैं।

हालांकि, स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने वांगचुक को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिसके चलते उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। वांगचुक का तर्क है कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(b) के तहत शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने का अधिकार है।

दिल्ली हाईकोर्ट की सुनवाई

आज दिल्ली उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई कर रहा है, जहां यह निर्णय लिया जाएगा कि वांगचुक को जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन करने की अनुमति मिलेगी या नहीं। वांगचुक के वकीलों का कहना है कि प्रदर्शन के जरिए वह पर्यावरण के महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करना चाहते हैं, और यह उनके मौलिक अधिकारों का हिस्सा है।

जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की पृष्ठभूमि

जंतर-मंतर को भारत में सार्वजनिक विरोध और प्रदर्शन के प्रमुख स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ कई सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता अपने मुद्दों को सामने रखने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से धरना और प्रदर्शन करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में, सुरक्षा और अन्य प्रशासनिक कारणों से यहाँ प्रदर्शन करने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं।

सोनम वांगचुक की पर्यावरणीय मुहिम

सोनम वांगचुक लद्दाख में पर्यावरणीय जागरूकता फैलाने और जल संरक्षण के क्षेत्र में किए गए अपने काम के लिए पहचाने जाते हैं। उन्होंने कृत्रिम ग्लेशियर बनाने की तकनीक ‘आइस स्तूप’ विकसित की, जो पानी की कमी से जूझ रहे हिमालयी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। उनका यह प्रदर्शन जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को उजागर करने और सरकार से इस पर त्वरित कार्रवाई की मांग के उद्देश्य से किया जा रहा है।

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