वन रैंक, वन पेंशन (OROP) योजना ने किये अपने 10 साल पूरे
वन रैंक, वन पेंशन (OROP) योजना ने अपने 10 साल पूरे कर लिए हैं, और यह योजना भारतीय सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई है। हरियाणा के पूर्व सैनिकों ने इस योजना के लागू होने के बाद इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया है, जो लंबे समय से सैनिकों द्वारा उठाई जा रही मांग को पूरा करता है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस योजना के माध्यम से सैनिकों को समान पेंशन सुनिश्चित करके उन्हें सम्मान दिया है।
वन रैंक, वन पेंशन योजना के तहत, जिन सैनिकों का रैंक और सेवा अवधि समान है, उन्हें सेवानिवृत्ति की तारीख के बावजूद समान पेंशन मिलती है। यानी यदि दो सैनिकों ने समान रैंक में समान सेवा अवधि पूरी की है, तो उन्हें समान पेंशन मिलेगा, चाहे एक सैनिक ने पहले सेवा समाप्त की हो और दूसरा बाद में सेवानिवृत्त हुआ हो।
यह योजना 2014 में लागू की गई थी और यह सेना, नौसेना और वायुसेना के पूर्व सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत साबित हुई है, जो लंबे समय से अपने पेंशन में समानता की मांग कर रहे थे। इससे पहले, अलग-अलग तारीखों पर सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों को उनके रैंक और सेवा के आधार पर अलग-अलग पेंशन मिलती थी, जिससे असमानता और विरोधाभास उत्पन्न हो रहा था।
OROP योजना के लागू होने के बाद, पूर्व सैनिकों ने इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा है, और इसे उनके सम्मान और कल्याण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के रूप में माना गया है। हालांकि, इस योजना के लागू होने के बाद भी, कुछ मुद्दे अभी भी उठाए जाते हैं, जैसे कि समय-समय पर पेंशन में संशोधन और एकरूपता बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन। फिर भी, यह योजना भारतीय सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है, जो उनके समर्पण और बलिदान को सम्मानित करती है।
